साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली वर्ष 2011 से 24 भारतीय भाषाओं में सालाना युवा पुरस्कार प्रदान कर रही है। इस में 35 वर्ष से कम के रचनाकार की किसी एक कृति को चुना जाता है। प्रत्येक भाषा से एक—एक प्रतिनिधि को यह युवा पुरस्कार मिलता है। इस ढंग से हरेक वर्ष साहित्य अकादेमी से मान्यता प्राप्त 24 भाषाओं से 24 युवा राष्ट्रीय फलक पर सामने आते हैं।

यहां साहित्य अकादेमी से समादृत युवा साहित्यकारों की रचनाओं का राजस्थानी भाषा में अनुवाद सं​कलित है। अनुवाद माध्यम भाषा हिन्दी तथा अंग्रेजी से किया गया है


ध्यातव्य : फिलहाल इस ब्लाग पर संपूर्ण अनुवाद इसलिए उपपलब्ध नहीं है कि पहले इसको पुस्तकाकार में आना है। पुस्तक छपने के बाद यहां सारा अनुवाद चस्पा कर दिया जाएगा।

असमिया : विजय शंकर बर्मन
























बांग्ला : शुभ्र बंधोपाध्याय























बोडो : सानसुमै खुंग्रि बसुमतारि







डोगरी : धीरज केसर निक्का





अंग्रेजी : जेनिस पेरियाट























गुजराती : अशोक चावड़ा बेदिल



















हिन्दी : अर्चना भैंसारे




रचाव री विगत
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मां अणपढ है अर बापू कीं पढया—लिख्या। म्हे खासा ई थाकल जात रा हां, एससी कैइजण वाळा। घर री गत इंयां ही कै छज्जै सूं पांणी, चांनणौ अर पून बेरोकटोक आय सकै हा। अबै जायनै छात कीं ठीक हुयी है, तद रैवणजोग हुग्यौ मकान। 

मां रौ ब्याव नौ बरस री औस्था में हुग्यौ अर दो बरस पछै मुकलावौ, तद सूं लेयनै आज तांणी मां पीहर रा दरसण ई नीं करया। मां री अणमणी—सी आंख्यां आज ई म्हनै मांय ई मांय धूजा देवै, अर म्हारौ छोटौ—सौ मन रात—बिरात मां रै ओळै—दोळै रमण लागै। 

म्हनै सावळ चेतै नीं जद म्हैं पैलपोत लिख्यौ। पण इत्तौ चेतौ जरूर है कै घराळा देख नीं लेवै, कूटीजसूं, इण डर रै कारणै फाड़ दीन्ही ही पैली रचना। आगै चालनै इणी डर म्हनै लड़नै री हूंस दीन्ही। पांचवीं में पढती तद पैलपोत कूटीजी, फगत इणी कारणै कै बास रै एक छोरै साथै अंटी—कंचां खेलै ही। पछै तौ छोटी—छोटी बात माथै नैम—कायदां री भांत रोळा—रब्बा। 

म्हारी आंख्यां ई मां री आंख्यां बरणी लागण लागगी ही। म्हैं सोच्यौ, अबै जकौ लिखीजसी वींनै फाड़सूं नीं, अर तद म्हारौ डर ई म्हनै डरावणै लागग्यौ। 

बगत—बायरै रै साथै नैड़ै—नड़ास री साथणां बिछड़ती गई अर किताबां नैड़ै हुवती रैयी। वै बोलण लागगी। 
मां म्हारी प्रेरणा है, जद ई कीं लिखूं वींरौ उणियारौ जरूर देखूं। पण मां आज ई उणी आस—बिहूणी आंख्यां सूं देखै अर कैवै— क्यूं लिखै है कविता/ औ तौ मरद रौ काम है/ थूं रोटी बणावणौ सीख/ नीं तौ रात—दिन म्हारी भांत कूटीजती रैयसी। 

जिंदगांणी अर किताबां मोकळा मुद्दा दीन्हा है तौ पछै लिखूं अर लिखती रैयसूं।

अर्चना भैंसारे
प्रताप टॉकीज़ के पास,
लेडीज़ गेट के सामने, गली 1,
अन्नापुरा, हरदा,
म.प्र. – 461331 
  
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बडेरी लुगाइयां


केई बडेरी लुगाइयां
वै जकी खारज करीजगी
चाकी—चूल्है, आंगणै अर बाखळ सूं,
मिल जावती ही
दिनुगै—आथणगै कदैई
एक—दूजै भेळी
करती हांसी—मजका
कै पछै मोलावती चूड़ियां,
आवतै—जावतै किणी फेरीवाळै नै लेवती थाम
खरीद लेवती जूंनी चप्पलां कै
कर लेवती सौदौ
फूट्योड़ा भांडां रै बदळै नवा बरतण रौ,

आपरै पेट सूं बांधनै कड़ूम्बै री भूख
रैवती कोडी खेतां री छाती माथै,
बळीतै रै भरोटियै में रैवती लादयां परंपरावां रा एनाण,
पछैई
अजनाल रै घाट पूगती रैयी टोळाटोळ
हरेक चुभी रै साथै उतारती रैयी
बचेड़ै पापां रौ करजौ,
आखै रिस्तां नै निभावती
कंवळी ई बणी रैयी,
पण—
बारै सूं उजळी दीखणवाळी लुगाई
पळीटेजेड़ी रैवती
किणी नीं किणी री मैली—सूगली चादर रै तागां सूं,
वै अबै मिल जावै कदै—कदास
अठीनै—वठीनै खिंडेड़ी—सी
मन ई मन पौरवां पर गिणै
नीं ठाह के...

बावड़नौ चावै
स्यात् वै उणी टोळ कांनी
जठै खुद ई दवाई हुवै
आपरै घावां री,

खारज करीजगी है
समूचै जीवण सूं
केई बडेरी लुगाइयां।

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हुवतौ एड़ौ

सोचूं आजकालै
बापू रौ उणियारौ अणमणौ क्यूं है?

मां री आंख्यां इत्ती भरेड़ी—सी क्यूं
जदकै हजारूं—हजार रंग है दुनिया—झ्यान में,

इंयां कै हुय सकतौ एड़ौ
सड़क माथै रमतै टाबरां री हांसी
कूदनै आय जावती रोसनदान सूं,
आंगणै में भरती उडार
चिड़ी री सोनल पांखां,
बाड़ै रौ जामुन
उग आवतौ ओळखीजतै स्वाद साथै,
फेरी लगावता वै ई दाढीवाळा दादोजी
'चूड़ी लेय लेवौ' री रागळी काढता,
बावड़ता गळी में
नेम धरम, तीज त्‍योहार, सदीनी रुणक लियां
अर समाय जावता
बापू रै उणियारै अर मां री आंख्यां में

सोचूं हूं आजकालै
कै वै दोनूं
आप—आपरै मांयनै के तोपै?
कै पछै
खासा कंटाळ झाड़क्यां उगगी सपनां रै मांय...
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देखै सपनौ

सपनै में बुलावै मां
अर भाजै
छाळियौ (हिरण रा बच्चियौ)—सौ फदाका भरतौ,
बापू साथै करै अड़ी
बाजार घूमणै री
अर चाल पड़ै आगै—आगै मोदीजतौ,

सपनै में लडावै जोड़ायत रौ माथौ
धूजतै होठां भरै बांथां में
ठंडी सांसां साथै

खिलावै बेटी नै जी भरनै
करै लाड
गोदयां लेयनै,
सपनै में ई करै भेळौ हरख
सांमटै सपनै में सपनौ,

हरेक दफा जुद्ध रौ एलान हुवणै सूं पैलां
वौ देखै सपनौ
घरां बावड़नै रौ...
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डूंगी जड़ घाल्यां


थे बाखळ रा बड़ हौ बापू
जका रैया खड़या डूंगी जड़ घाल्यां

एड़ा बड़
जिणरी जोरावर बावां
उंचाय सकै म्हारै हींडै रौ बोझ
अर थाम्यां राखै
इण कारणै
बाखळ री माटी नै
कै रिस्तां रौ एक ई रवौ
फरक री बाढ में नीं बैव सकै,

एड़ा बड़
जिणरी आंख्यां करै रुखाळी
कै नीं आय सकै डांफर म्हारै आंगणै
अर रैवै साबत छान छाइजेड़ौ घर
तावड़ै—छींयां रै ओळै—दोळै।
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हुवण लागग्यौ तोड़ौ

मां सुणावै कहाणी
जकी सुण राखी ही वीं
आपरी मां सूं
अर वींरी मां ई
आपरी मां सूं

सोचूं
म्हैं ई सुणायसूं कहाणी
म्हारै टाबरां नै
इणी भांत
चालती रैवैली कहाणी पीढी—दर—पीढी

पण देखूं कै
हुवण लागगी कमती
तुळसी—मरवै री ज्यूं कहाण्यां,
अर हुवण लागग्यौ तोड़ौ
आंगणै में
कहाणी सुणता—सुणावता लोगां रौ ई..
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तितल्यां हैं यादां

फूल दांईं खिल जावै देह
तद दबाका लगावण ढूकै यादां
उणियारै जामै बसंत
पसर जावै महकार
नाचै रग—रग राग—रंग
तितल्यां ई तौ हुवै यादां
कुदरत रा हजारूं रूप
आपरी पांखां में सांमटनै
घूमै मन रै कूंणै—कूंणै
हथेळी मांय आवतै उजास ज्यूं
रम जावै ओळूं री देह में,

संचरावै जीवण रौ मोद आपरै मांय
जी सौरै रै छिणां रौ बंस बधावती
भाजै फूल—फूल
यादां दबाका लगावै, महकै, घूमै, भाजै
तितल्यां हैं यादां...
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जद कदैई

अर जद कदैई
मैली हुय जावै रुह

तद चेतै आवती
थारै मन बैवतै
मीठै झरणै री

कै पछै जिणमें चुभी मारनै
करूं उजळ खुद री आत्मा नै।
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राजस्थानी उल्थौ : दुलाराम सहारण


कन्नड़ : लाक्कुर आनंद