साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली वर्ष 2011 से 24 भारतीय भाषाओं में सालाना युवा पुरस्कार प्रदान कर रही है। इस में 35 वर्ष से कम के रचनाकार की किसी एक कृति को चुना जाता है। प्रत्येक भाषा से एक—एक प्रतिनिधि को यह युवा पुरस्कार मिलता है। इस ढंग से हरेक वर्ष साहित्य अकादेमी से मान्यता प्राप्त 24 भाषाओं से 24 युवा राष्ट्रीय फलक पर सामने आते हैं।

यहां साहित्य अकादेमी से समादृत युवा साहित्यकारों की रचनाओं का राजस्थानी भाषा में अनुवाद सं​कलित है। अनुवाद माध्यम भाषा हिन्दी तथा अंग्रेजी से किया गया है


ध्यातव्य : फिलहाल इस ब्लाग पर संपूर्ण अनुवाद इसलिए उपपलब्ध नहीं है कि पहले इसको पुस्तकाकार में आना है। पुस्तक छपने के बाद यहां सारा अनुवाद चस्पा कर दिया जाएगा।

नेपाली : मनोज वोगटी







मां

थारै हाथां में आखर है, गीत है, सगती है!
मां रै हाथां में के है?
माटी है, खुरपी है, बीज है
थारै आखरां रौ मारग, इणी खुरपी सूं खोदै है मां
अर गीतां रा बीज तोपै।

थारै दुखां नै असैवणजोग माननै पाथर फोड़ै
बणावै भींत
संवारै माटी, बणावै मारग

थारै हाथां रै खुद री आंख्यां परसनै
जीवै हजारूं करोड़ां बरस मां।

थारै हाथां में पोथ्यां है, ग्यांन है, संसार है !!
मं रै हाथां में के है?
माटी है, पसीनौ है अर गांव है।


जड़

नीचै सूं पांगरनै ऊपरनै बधै दरखत
जड़ हुवै जमीन मांय
थे जड़ां नै उपाड़ नीं सकौ।

थांरौ उपाड़ेड़ी पौध, म्हारै सिर रौ जांणै एक बाळ
थांरै चिगथेजेड़ी कली, म्हारै नख रौ अेक हिस्सौ
थांरौ फोड़ेड़ौ बीज, म्हारी आंख।

इंयां कै म्हनै उपाड़ सकसौ
पण म्हारी जड़ां नै नीं उपाड़ सकसौ
जड़ां रैवै हरमेस जमीन रै मांय
अर उलरै इणी जड़ां सूं अणगिणत दरखत।


म्हारी तीस कांनी बधतै पांणी नै रोकौ, वौ मुड़सी खेतां कांनी
म्हारै काळजै कांनी बैवती पून नै डाटौ, वा जावैली बीज कांनी
म्हारै उणियारै कांनी मुळकतै ऊजाळै नै थामौ, वौ बससी पत्ता में
चिगथौ जठै म्हैं खड़्यौ हूं
माटी नै मजबूती सूं पकड़ै है जड़ां।

थे जड़ां नै उपाड़ नीं सकौ
सौगन खावूं
थे जड़ां नै उपाड़ नीं सकौ।


भगवांन

हथियारां री धार परसनै आवणवाळी जंगळी पून बित्ती डराक नीं हुवै
जित्ती डराक हुवै मिंदर में बाजणवाळी टाली

जद टाली बाजै, दादी री गोथळी खुल्लै
जद टाली बाजै, बकरै री नाड़ हालै
जद टाली बाजै, डाळी सूं फूल टूटै
तद टाली बाजै, दुनिया रै नक्सै में बेजका हुवै

टाली बाजै कै राजी हुवै
दानपेटी में आंख्यां रोपनै टंटोळणवाळौ भगवांन!

भगवांन रै हाथ में लीरीजेड़ौ तिरसूल
सदीव क्यूं रत्नमान लुहार री पीठ रुपै?
क्यूं पंडित हरिप्रसाद री छाती चिरै?
क्यूं दादी रै उणियारै री सळां छोलै?

जीवन रौ अरथ मिंदर में मिल्यां पछै
संगमरम अेकठ करणै लागग्यौ
राजनीति में माहिर मिंदररबासी गांव रैबासी हरिकिशन!

कांईं मिंदर बेचनै जीवै है भगवांन।


आंख्यां सूं बारै

म्हारी आंख्यां खुदनै नीं देख सकै
इणी कारणै
वै म्हारै माथै राज करै
आंख्यां खुली राखौ पण देखौ मत्ती कैवै
कैवै कै निजरां जमायनै राखौ पण देखौ नीं।

जद खुद री निजरां सूं ल्हुकनै वै कीं करै
तद वै आंख्यां खासा डरै।

आंख्यां मींच्या रात नीं हुवै
आंख्यां खुल्यां दिन नीं उगै।
जद खुद री निजरां सूं ल्हुकनै वै कीं करै
तद वै आंख्यां खासा धूजै।

अैड़ै अंधियारै में कोई जी सकै है कांईं?

मर्यां पछै लास री आंख्यां ढांपणवाळा समझौ!
लास री आंख्यां देख नीं सकै।

म्हैं देख सकूं।


दार्जीलिंग

ख्वाब
लटकतौ रैवै है चमचेड़ां री ज्यूं अंधेर कोठरी में
चक्करी काटतौ रैवै गिरजड़ै ज्यूं अंधरै रै ऊपर
क्यूंके आंख्यां रै आसै-पासै काळौ तिरपाल बिछायनै सोवणवाळौ
परदेसी ख्वाब नै
ऊजाळै में ई आच्छौ लागै दुख

नीं उडीकै आंधी कै छात कद लागसी
चालती रैवै आंधी,
नीं उडीकै भौमपाटणौ कै खेतां में हीराळी कद पसरसी
पड़ती रैवै माटी,

अर ठाह ई नीं लागै कै किणरै पेट में है सांस हरणौ चाकू
रात ढळ्यां पैलां ई मरतौ रैवै है ख्वाब।

मौत ई घर में मरै
जांणै जी लीन्हौ,
कीड़ी लैंण बांधनै आवै कीड़ीनगरौ जमावणै सारू
भींतां बड़ै, भौम कुचरै, वठैई मरै।

घूमती रैवै है कल्पना री भांत सजेड़ी भौम
कै घूमै है पछै आंख्यां?

आंख्यां री बात है ख्वाब
कै ख्वाब री झूठी बातां है आंख्यां?

बांस री आंख गांठ हुवै, ख्वाब नीं
हरमेस बांस री भांत खड़ी नीं रैय सकै आंख्यां।

ख्वाब री चामड़ी रौ मेळ आभै सूं है?
कै पछै छिपकली रौ उणियारौ सपनै रळतौ है?
आंधां रै सपनां में दरसाव कैड़ौ हुवै?

पाथर तौ अै आंख्यां है जकी
हरमेस दीखै, देखौ कैवती रैवै
के दीखै, के देखौ वै नीं बतावै,
चैरास्तै रै आदिकवि जैड़ी खड़ी चेतना रै मांय
खून कठै सूं चालै।

मरेड़ै जैड़ौ लागै है ख्वाब, बावळौ हुयनै
जांणै औ स्हैर ई बावळौ हुग्यौ।










संस्करण

बापू री आंख्यां सूं डूंगौ नीं है
कोई समदर

बापू री आंख्यां में
डूबै घर, डूबै कड़ूम्बौ, डूबै जीवण,
डूबै संसार,

जिण दिन बापू री आंख्यां मीचीजै
म्हारी आंख्यां खुलै दिनुगै तांणी।

पछै
म्हारी आंख्यां ई बापू री आंख्यां बण जावै।









म्हैं कीं लिखूं

म्हैं आग नै खंजर सूं
छोटै-छोटै टुकड़ां में काटूं
क्यूंकै जूझार मिजमान है म्हारा
वांरी भूख म्हारी थोड़ी-सी आग मेट नीं सकै
कमती-सी आग री सगती ई
कम हुवै
कलम रै जूझारां कन्नै
सबद ई छोटा हुवै
छोटा-छोटा सपना हुवै

पण वांनै ठाह है
कै धरती रेत रै नैना-नैना कणां सूं
अर छोटै-छोटै पाथरां सूं अळगी
कीं नीं।

म्हैं पांणी नै तावड़ै में सुखावूं
क्यूंके जूझार म्हारा मिजमान है
वांरी नींद रै डाम लागै ठंडै पांणी सूं

म्हैं पून नै धोवूं
क्यूंके जूझार म्हारा मिजमान है
वांनै सांस लेवण में दोरपाई हुवै

कीं काची पून नै
वांरी आत्मा रै बीज तांणी परस करणौ पड़सी
कीं जवांन पांणी नै
वांरै मांयलै कीं ठंडै खून नै धोवणौ हुसी
कीं ताजी आग नै
वांरै मांयलै कीं पाथरां नै बाळना हुसी।

म्हैं बोली नै गीत सीखावूं
क्यूंकै जूझार म्हारा मिजमान है
कफन ओढ्यां सूत्या है
वांरै मांयलै जीवण नै
बोली मिलै
गीत री नागरिकता पानड़ी में छप्यौ
गूंठौ टेक जोग जमीन माथै
इंदिरा आवास योजना सूं बण्यौ नाटक
अर वठैई खड़्यौ देस जूझार
किण री बोली बोलै?

म्हैं गती नै सीसौ दीखावूं
म्हैं सबदां नै बोली देवूं
म्हैं कविता नै जीवणौ सीखावूं

म्हैं कीं लिखूं।

आदिवासी री फोटू

थांरी आंख्यां माथै धरीजेड़ौ स्वेटर
म्हारी आंतडि़यां रै रेसां सूं मां रौ बणीजेड़ौ है

थांरै पढीजती किताब
म्हारौ सर कलम करनै बीजीजेड़ै आखरां री कब्र है
सिर-विहूणै वाक्यां रौ मैयती हिंवळास
थारै बाप रा कोरड़ा खाइजेड़ी लोहीझरांण कविता
म्हारै माथै ऊपरां चेपनै भाजेड़ौ कवि

ल्हुकावू थिति मांय
थूं सिगरेट री सट मारै
अर धुंवौ उडावौ म्हारै उणियारै कांनी

धुंवौ खासौ डराक हुवै क्यूंकै
म्हैं म्हारी बस्ती नै बळतां देखी है
अर देखी ही वठैई थारी बिल्डिंग नै वठैई लेवती काळा-काळा सांस
वठैई देख्यौ है काळा-काळा सांसां हेटै दब्योड़ौ कंवळौ इतियास।

चायपत्ती बूंटै रै पत्तां रौ जांघियौ पहरनै म्हारै रेत रमती बगत
थूं टेडीबियर रै साथै स्कूल जावै हौ
चेतै है?

म्हैं गूंठै माथली लकीरां ढोयनै थांरै घरां बड़îौ
तद थारै हाथां में किताब ही
म्हारै हाथां में थाळी।

थारै ऊजळ उणियारै नै खासा दफा ढाप्यौ है म्हारी पड़छींयां
कित्ती दफा चिगद्यौ है पड़छींयां,
म्हारी पड़छींयां सूं जे खून निसरतौ तौ थांरै आंगणै में
म्हारौ नांव अंग्रेजी में ई लिखीजतौ स्यात्...

वौ नांव म्हैं पढ ई नीं सकतौ, क्यूं?
थारी सेडौ निसर्यै है कदै?
वीं सेडै री कीं रींगां नै उणियारै माथै सजाया है कदै?
थांरी कंवळी चामड़ी माथै गुमड़ा निसर्या है कदै?
घर मांयली भींत माथै बाबै री टांगेड़ी तलवार, मां माथै करीजती रीस
थूं देखी है कदै,
देख्या है थूं कदै मां री आंख्यां में आंसूं?

थारी चाय रौ प्यालौ म्हारै बाबै रौ सौ बरसा जिंदगांणी पछै निचोइजेड़ौ रस
थांरौ पहरेड़ौ जूत्तां माथै चिलकै कंपनी कांनी सूं काढेड़ी म्हारै बाप री खाल
थांरै जीमणवाळै धान नै काढणै सूं पैलां
नीं जांणै कित्ती बरियां टूट्यौ म्हारै दादै रौ धोळौ जनेऊ तागौ।
म्हारै बडेरां री खाल माथै सरकती गाड्यां, म्हारै बडेरां ई ख्वाब हैं
पण हगीगत आपरै सारू हुयौ है।

थांरी करड़ी सांच आगै पांख बाळनै मरणवाळी तितली
म्हारी ई बिरादरी री है।

अबै ई म्हारै अठै कोई सुरगां सिधार्यौ है
म्हैं मौत रै गम में हूं
अर थे चाउमिन खावौ हौ।

म्हैं रेगिस्तान री खुदाई में हूं
अर थे पांणी पीवौ, मौजां मारौ।

थांरौ पीयेड़ौ पांणी म्हारी मां रा आंसूं
ज्का म्हारै हाडका नै जोड़नै सारू सरकार बेच्या है।

म्हैं थारै पगां हेटली धूळ
पिछांण म्हनै
म्हैं थांरौ दास हूं।

म्हैं पहाड़बासींदौ हूं
आदिवासी हूं।
















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