साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली वर्ष 2011 से 24 भारतीय भाषाओं में सालाना युवा पुरस्कार प्रदान कर रही है। इस में 35 वर्ष से कम के रचनाकार की किसी एक कृति को चुना जाता है। प्रत्येक भाषा से एक—एक प्रतिनिधि को यह युवा पुरस्कार मिलता है। इस ढंग से हरेक वर्ष साहित्य अकादेमी से मान्यता प्राप्त 24 भाषाओं से 24 युवा राष्ट्रीय फलक पर सामने आते हैं।

यहां साहित्य अकादेमी से समादृत युवा साहित्यकारों की रचनाओं का राजस्थानी भाषा में अनुवाद सं​कलित है। अनुवाद माध्यम भाषा हिन्दी तथा अंग्रेजी से किया गया है


ध्यातव्य : फिलहाल इस ब्लाग पर संपूर्ण अनुवाद इसलिए उपपलब्ध नहीं है कि पहले इसको पुस्तकाकार में आना है। पुस्तक छपने के बाद यहां सारा अनुवाद चस्पा कर दिया जाएगा।

राजस्थानी : दुलाराम सहारण



आत्मकथ्य— 
कथणै सारू न्यारी भांत रौ कांईं है म्हारै कन्नै



म्हारै वाल्है मीत उम्मेद गोठवाल नै खासा दिन हुयग्या लारै पड़्यां कै कीं खु रै पेटै ई लिखनै देय। म्हैं बरियां-बरियां टाळतौ रैयौ। कारण अेक ई हौ कै अैड़ौ कांईं हुय सकै म्हानै कन्नै जकौ म्हैं लिख सकूं अर वौ बीजां रै बांचणजोग हुय सकै। पण लगौलग री रटंत अर वीं मांयली कंवळाई मिनख नै अैड़ौ तौ कर ई देवै कै वौ लिखणै बैठ जावै। लिखणवाळौ वौ मिनख जद म्हैं हुवूं तद लिखती वळा सोच फगत वां भीखां रै ओळै-दोळै ई रमै, जका म्हैं म्हारी खुदू-बिरतांत पोथी ‘आंगणै री ओळूं’ अर वींरै बीजां भागां मांय चितार्या। इण रमाव रौ कारण, कै वांसूं अळगौ- म्हारै कन्नै कीं बेसी जचाव है ई कोनीं। खुदू-थरपणां मांय जूझूं, तद इण जूझ रौ तौ बरणाव करणौ नीति मुजब कोनीं, पण कीं अैड़ी बातां इ्र है जकी कथीज सकै। पण कथणै सारू न्यारी भांत रौ कांईं है म्हारै कन्नै?

हां, बात बणाइज सकै अर बात बणाव में कठैई जुगू जोड़ हुवै तौ वींनै ईज घालणौ लिखारै रौ धरम हुवै। वीं धरम पेटै रचाव में रस जामै। वीं रस नै पोखतौ कड़ूम्बौ राजी ई हुवै तौ बेराजी ई।

तौ पछै बात सरू करां वीं गांव सूं जठै म्हारौ जलम हुयौ। वीं आंगणै सूं जठै म्हैं गुडाळियां रम्यौ। वीं बाखळ सूं जठै म्हैं चालणौ सीख्यौ। वीं गवाड़ सूं जठै म्हैं घूता-गिंडी खेली, धोळियौ-भाठौ रम्यौ। वां गळियां सूं जठै पांवडा मेलती बगत लोक-ब्यौवार री घणी बातां सीखी।

तौ पछै वीं गांव रौ नांव है- भाड़ंग। जकौ गांव इतिहासकार गोविंद अग्रवाल-सुबोधकुमार अग्रवाल मुजब चूरू सूं चाळीसेक मील उतादौ तारानगर (रिणी) हलकै मांय बसाव राखै। जकै रौ उल्लेख ‘छंद राउ जइतसीरउ बीठ सूजइरउ कहियउ’ अर ‘लछागर रास’ रै साथै-साथै केई बीजां ग्रंथां में ई लाधै। वीं मुजब 14वैं-15वैं सईकै सूं पैलां तांणी भाड़ंग सिमरध है। ब्यौपार रै मारग धकलौ रैठांण हौ। अठै रै पसुधन खातर नैड़ै ई अेक ढाब थरपीजी ही, जकै रै कांर्ठ आज साहवा कस्बौ बिराजै। कीं आंतरै रिणी कस्बौ रिणकली कुम्हारी (रिणी देवी प्रजापत) बसायौ, जकौ आगै चालनै तारासिंह रै नांव माथै तारानगर बाज्यौ। बीकानेर रियासत री खेंचातांण सूं पैलां ई भाड़ंग मांय खेंचातांणी माची। सहारणपुर (हाल उत्तर प्रदेश) इलाकै सूं सहारण तीरथ जातरा सारू कोलायत जावै हा, मारग माथलै गांव भाड़ंग बासौ लीन्हौ। वठै सहू जाटां रौ राज। गढ री चीणत अर नींव मांय सहू भाणज अर सहारण बेटै नै दीरीजणै री लोकबात। तीरथ-जातरा बगता सहारणां सूं विधवा सहू बेटी अर सहारण बहू री पुकार। जुद्ध रौ बणाव अर सहारणां री थरपणां। आगै चालनै गिरासिया राज। 360 गांवां री राजधानी- भाड़ंग। उपराजधानी- सिरसला।

वठै सूं ई चालतौ सहारणां रौ इतिहास हाल रै राजस्थान मांय कथीजै। वीं इतिहास रै ओळै-दोळै पूलौ सहारण, जबरौ सहारण, जोखौ सहारण अर बीजा लोक-कथीजता बडेरा हुया। वां बडेरां रै आसै-पासै कीं खेतीखडि़या ई गुजारौ करता। केई दौरौ तौ केई सौरौ। दौराई-सौराई रै दिनां मांय पड़ता-उठीजता कीं बडेरा महरावणसर पूग्या। जकौ चूरू रै अैन नैड़ै।

वठीनै भाड़ंग कांनी ई जुग लद्यौ। जूंनौ भाड़ंग थेह हुयौ अर नवौ आबाद। नवै आबाद भाड़ंग मांय जोसीजी महाराज पैलपोत घर थरप्यौ। नांव तौ ठाह नीं पण भौमियै जी महाराज रै रूप में हाल ई पूजीजै। इणी भौमियै जी री भौम इग्या लेयनै महरावणसर सूं कीं बडेरा पूठा मुड़्या अर भाड़ंग आय बस्या। वांरी लांबी लैण। वीं लैंण मांय नंदराम, शेराराम, मामराज, मनफूलराम री विगत। मनफूलराम री संतानां मांय सै सूं छोटौ म्हैं। सात भाई अर दो भैण। नांव रौ उल्लेख ई लाजिमी, क्यंूकै वांरी ओळख पेटै ई म्हारी ओळख- खेताराम, गणेशाराम, आदराम, हुणताराम, बालूराम, निराणाराम, जीवणी, सरोज। छेकड़लौ बेटौ, लाडेसर म्हैं।
म्हारौ नानेरौ गांव- ललाणा (नोहर-हनुमानगढ) रै हावळिया गोती जाटां में। मां जहरौ देवी। मामौ हरचंद अर तेजाराम। वठै री रमत री घणी ओळूं नीं पण मामै हरचंद री स्याणप अर तेजै मामे री गूंग हाल ई चेतै। भाई मनीराम अर मेहरचंद कान्नलै लाड री घणी बातां। मां री तौ कोई के बात कर सकै? वीं पेटै तौ कित्ता ई ग्रंथ लिखौ चायै पण पूरा नीं लिखीज सकै, फगत मैसूस करीज सकै। पण अठै इत्तौ जरूर लिखीजै कै ‘आंगणै री ओळूं’ पोथी मां रै ओळै-दोळै ई है। मां रौ हिंवळास- खुद रै हुवणै रौ बैम अर सो-कीं। पण औ सो-कीं.... 9 जनवरी, 1995 तांणी। खैर....।

बात सरू करी ही गांव सूं। गांव री गिंगरथ सूं। गांव रै राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय में म्हारी पढाई सरू हुयी। आठवीं तांणी अठैई रुळपटी मारी। नवीं में नैड़ै रै गांव धीरवास बड़ा रै राजकीय माध्यमिक विद्यालय में भरती हुयौ। नवीं-दसवीं अठै सूं करी। ग्याहरवीं में राजकीय माध्यमिक विद्यालय, तारानगर में आयौ। खासा धक्का खाया। काॅलेज री समूची पढाई राजकीय लोहिया महाविद्यालय, चूरू में केवटी।

भाड़ंग रै उच्च प्राथमिक विद्यालय में पढती बगत री घणी बातां चेतै आवै। गुरुवर उम्मेदसिंह जी सूं छुट्टी मंागनै दूध चूंघणै सारू घरां बावड़नौ, गुरुवर खींवकरणजी-सरदार जगमालसिंहजी रै रैवासै जायनै सीरौ खावणौ, गुरुवर डूंगरमल जी शर्मा साम्हीं अड़ी करनै आजादी उच्छब मौकै केई कायक्रमां में नांव लिखावणै अर नीं लिखीजणै रै फैसलै साथै डंडां री मार खावणी, स्कूल में प्रार्थना अर प्रतिज्ञा मौकै आगै आवणै री हूंस, अंत्याक्षरी में अगावू, बालसभा में सिरै रैवणै री कुबद। गुरुवर पूर्णमल जी री कंजूसी पेटै अर माड़ूराम जरी ‘हैं-जकौ सूनौ’ जैड़ी नकल कढावणी तौ गुरुवर बनारसीलाल जी री कांन में कांकरी घालनै पींचणै री बांण चेतै आवै अर और ई चेतै आवै घणी बातां, नीं जांणै के-के...।

इणी के-के मांय आज चेतै आवै बडै भाईजी निराणाराम कांनी सूं दीरीजेड़ी वै बाल-पत्रिकावां, जिणनै ओळखनै म्हैं रचावू सपना देख्या। ‘पत्र-मित्र’ थम्म पेटै कागद न्हाख्या। केई पत्र-मित्र बणाया। रचाव री आखड़ी लीन्ही। राजस्थान पत्रिका प्रकाशन समूह री ‘बालहंस’ पत्रिका में निबंध लिखौ, रंग भरौ, चित्र देखनै कविता लिखौ आद प्रतियोगितावां में भागीदार बण्यौ। केई इनाम ई पांती आया।

जद आठवीं पास करनै दो कोस आंतरै धीरवास रै स्कूल में भरती हुयौ तद तौ ‘बालहंस’ म्हारी अंगावू बांण बणगी। धीरवास रा ओमप्रकाशजी शर्मा बालहंस बेचता। वां कन्नै सूं लगौलग बालहंस खरीदतौ अर रचनावां भेजतौ। दो रिपिया में अेक अंक आवतौ, मतलब महीनै रा च्यार रिपिया। किण भांत वौ जोड़ बैठतौ, म्हारौ ई जीव जांणै। चवन्नी-चवन्नी जोड़ीजती। पण जद म्हारै बाबै आ गत देखी तौ वांरौ हाथ खुल्लौ हुयग्यौ अर दो रिपिया खासा सौरा मिलणै लागग्या। वांरी जेब में स्यात् बेसी सौरपाई नीं हुवती। पण... म्हारौ कोड मर्यौ नीं अर जद बीस कै तीस रिपियां रौ मानदेय बालहंस कांनी सूं पूगतौ तद तौ हूंस सवाई हुवती अर हिसाब बरौबर।

15 सितम्बर, 1976 नै जकी मां म्हनै जलम दीन्हौ वींरी ओळूं में केई रचनावां छापां में छपी। 

पण असली जी सौरौ तौ तद हुयौ जद राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर कांनी सूं महाविद्यालय स्तरीय ‘भत्तमाल जोशी साहित्य पुरस्कार’ मिल्यौ। वीं बगत म्हैं राजकीय लोहिया काॅलेज, चूरू में बीए फाइनल में पढतौ। वीं बगत छात्रसंघ रौ महासचिव ई हौ। राजस्थान रा मुख्यमंत्री भैंरोसिंह शेखावत अर शिक्षामंत्री गुलाबचंद कटारिया रै आतिथ्य में तेवड़ीजै जयपुर जळसै में वौ पुरस्कार मिल्यौ, तद म्हैं ई नीं अकादमी अध्यक्ष सौभाग्यसिंह शेखावत ई गळगळा हुयग्या हा। वां कैयौ, थूं बड़भागी है कै पैलौ पुरस्कार अेक मुख्यमंत्री देवै, म्हे तौ काळजै में हाल ई केई पीड़ पळोटां। वांरी मनगत म्हैं समझ सकै हौ। पण वीं पुरस्कार म्हारी हूंस रै बधापै में कीं कमी नीं राखी। ‘जागती जोत’ रा संपादक गोरधनसिंह शेखावत म्हारी काची रचनावां नै इंयां उळटनै छापता जांणै म्हनै सीखावता हुवै कै रचनावां इंयां लिखीजै। इण सीखाव अर बणाव धक्कै बी.ए. हुयग्यी। आगै री पढाई सारू म्हैं म्हारा पत्रमित्र डाॅ. शक्तिदान जी कविया, जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय, जोधुपर रै संदेसै मुजब केई बेलियां रै साथै जोधपुर पूग्यौ अर एम.ए. हिन्दी में दाखिलौ लीन्हौ। पण कैबत है नीं कै गंडक रौ जी हाडका में ई रैवै। वा ई म्हारै साथै हुयी। चुनावी जुड़ाव वठै क दजी लागण देवै हौ। चूरू पाछौ बावड़नै एलएल.बी. में दाखिलौ लीन्हौ। छात्रसंघ रै चुनावां में धक्का खाया अर छात्रसंघ अध्यक्ष बणग्यौ।

पण इण मारग रै आंटै रचाव कीं गमग्यौ। कीं के जाबक ई गमग्यौ। एलएल.बी. पछै जद कीं सांस आयौ तद जी जम्यौ। साहित्यिक जुड़ाव हौ ई, लैंण बदळगी। साहित्यिक जोड़ पेटै गांव-गवाड़ में चवड़ै हुवतै सांच रै ओळै-दोळै बाकां-चूंकां आंकां में लिखनै अेक पोथी बणाइजी- ‘पीड़’। आ म्हारी पैली छपी पोथी ही। इणरै पछै ‘जंगळ दरबार’, ‘क्रिकेट रो कोड’ अर ‘चांदी की चमक’, ‘आंगणै री ओळूं’ पोथ्यां आई।


एलएल.बी. म्हारै सारू वकीलाई रौ गेलौ नीं ही। फगत छात्रसंघ चुनाव रौ गेलौ ही। क्यूंके जद म्हैं जोधुपर सूं बावड़्यौ तद राजकीय लोहिया महाविद्यालय, चूरू में फगत एलएल.बी. रा ई एडमिशन बाकी हा। बीजी सीटां भरगी ही। औ ईज कारण रैयौ कै एलएल.बी. पछैई कोर्ट में कदैई जी जम्यौ नीं। दो पीसा कमावणै री भूख पीसावाळां रै सैंजोड़ै हुवणै सूं मरगी ही। पीसां री भरी पेटी रोजीनै सिरांणै धरनै सोवणियां नै ई ऊपरसांसां हुयेड़ा देख्या तद तौ आत्मा जाबक ई गवाही नीं दीन्ही। अर कैवूं कै आज ई गवाही नीं देवै।
पण छात्रसंघ रै घेर बहोत-कीं सिखायौ। कैबत है कै विरोधी हुवणा चाइजै, जिण कारणै खुद रै लोगां रौ ठाह लागतौ रैवै। पोत साम्हीं आवतां रैवै। वा ई हुई अर चुनाव रै दांवपेच पेटै मिनख नै परखणै री सोच ई म्हारै मांय बड़ी। खड़्यौ-खड़्यौ मिनख किंयां फेर काढलै, साम्हलै नै किंयां गोळी देय देवै- घणौं-कीं सीख्यौ।


इण सूं आंतरै नेतावू हौड, साहित्यिक जोड़ हौ अर वीं बिचाळै ई प्रयास संस्थान, चूरू री थरपणा ही। प्रयास संस्थान म्हारै सारू कांम करणै रौ अेक मंच बण्यौ। वठैई कांम करतां जबरा-जबरा अनुभव हुया। थारा-म्हारौ, आपणौ-वांरौ के-के कोनीं हुवै साहित्यिक खेमां में। पण अक बात तौ साफ अनुभव करी कै साहित्यिक नेतावां सूं बेसी चोखा हुवै राजनैतिक नेता। वै जैड़ा हुवै, वैड़ी छिब जनता में राखै। पण साहित्यिक नेता अेक मुखौटौ राखै। जनतां, इंयां कै पाठकां में कीं दूजा अर हकीकत में कीं और। बेसी बातां नै इत्तै में ई समझ्यौ जा सकै। हां, केई-केई गुण ई हुवै वां में, जका सीख लेवणा चाइजै। वांनै सीख्यां दुनिया में सौरपाई सूं जी सकै मिनख। पण कैबत है कै कीच में कमल ई खिलै। केई अपवाद ई हुवै।



साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली रै राजस्थानी परामर्श मंडल में सदस्य री हैसियत सूं जावणौ, म्हारै सारू नवौ पसवाड़ौ हौ। वठै जद मौकौ मिल्यौ तद वां पंचबरस में खासा अनुभव मिल्या। खास बात आ रैयी कै इण मौकै में राजस्थान रा केई खुदूनांमी साहित्यिक नेतावां रै मरोड़ा ई चालता दीख्या, जका नै हरमेस दिक्कत रैयी कै वठै सो-कीं ठीक नीं हुवै। पण जदवांनै ई कीं आगै चालनै मौकौ मिल्यौ तद इंयां लाग्यौ कै वांरी कथणी अर करणी न्यारी-न्यारी है। अठै आयनै साफ हुयौ कै मिनख रौ सुभाव लगैटगै अेकसौ हुवै। वौ आपरै हित सारू सिद्धांत अर उसूल घणां कीं छोड सकै।
इणी छोडणै-जोड़नै री रंगत रौ नांव राजनीति हुवै, जकी समाज रै हरेक हिस्सै में बसै। घर-आंगणै सूं लेयनै देस-दुनिया तांणी। कोई कैवै कै म्हैं राजनीति नै दाय नीं करूं, तौ म्हैं मानूं कै वौ झूठ बोलै। वींरै इण बोलणै लारै ई राजनीति हुय सकै। साहित्यिक जीवन जीवता थकां ई म्हारै मांय इणी अनुभवां पेटै राजनैतिक हूंस कदै मरी कोनीं। क्यूंके म्हारौ सोच साफ हौ कै राजनीति हरेक करै। आपां क्यूं नीं करां। पण म्हारौ मानणौ है कै राजनीति करती बगत मारग साफ हुवणौ चाइजै। मतलब दो घोड़ां असवारी नीं करणी चाइजै। कै तौ अठीनै अर कै वठीनै। इण सूं कदै-कदै घाटौ ई हुय सकै, पण घणी दफा नफौ ई हुवै। इन्नै ई हां जी, हां जी अर बिन्नै ई हां जी, हां जी- बेसी दिनां तांणी ल्हुकी नीं रैय सकै। अठीनै रा ई विस्वासु नीं समझै अर वठीनै रा ई। खुद रै मन में दूजा नै चंदरू बणावणै रौ बैम भलांईं पाळ्यां राखौ। जद कै आज जकौ दो रोटी खावै, वौ सगळी च्यार सौ बीसी समझै।

इणी सोच रै चालतां कदैई राजनीति पेटै डांफाचूक नीं रैयौ। कांग्रेस संगठन सूं हेत हौ अर कदैई बीजै जोड़ में नंी पज्यौ। हां, दूजै दळां रै केई लोगां सूं जुड़ाव रैयौ, पण वठैई म्हारी छिब साफ रैयी कै औ कुणसी विचारधारा रौ है। मतलब वठै दळगत जुड़ाव नीं रैयौ। बातचीत रौ संबंध रैयौ है रैयसी। इणी गत कदैई साहित्यिक जुड़ाव में दोगाचिंती नंी रैयी। तथाकथित स्वयंभू प्रगतिशीलां सूं कदैई नीं बणी। आज ई नीं बणै। क्यूंकै वठै ब्लैकमेलिंग सूं अळगौ कीं नीं। खुद रै हित पेटै वै पिछांण-परेड में ई नाट सकै। मतलब कालै जकौ चोटीकट हौ, वौ आज दुसमीं बण सकै अर आज जकौ दुसमीं है वौ कालै चोटीकट बण सकै। अैड़ां सूं कदैई नंी पटी। नीं पटाणै री आस राखी। कांईं ठाह के हुवै, मूंन रैवणै री आसैपासै रै केई बडेरां री समझ ई नीं बरत सक्यौ। घाटौ है कै नफौ, जुग बतासी।


छेकड़ में, साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली में राजस्थानी एडवायजरी बोडै संयोजक रैया डाॅ. चंद्रप्रकाश देवल री साथ देवणै री बांण री बडम करणी कदैई नीं भूलसूं। चूरू रै नवा लिखारां सारू बोर्ड में किस्यौ ई प्रस्ताव राख्यौ तौ वां हरमेस हामळ री नाड़ हलाई। इंयां ई लोहिया काॅलेज छात्रसंघ रै दिनां में श्री अश्कअली टाक अर श्री नरेन्द्र बुडानिया रौ दीरीजेड़ौ साथ ई नीं भूल सकूं। श्री अश्कअली जी टाक रै कारणै लोहिया काॅलेज में भूगोल सूं पीजी हुयी अर जस म्हनै मिल्यौ। श्री नरेन्द्र जी बुडानियां वां दिनां लोकसभा सांसद हा अर वांरै साथ कारणै हलकै में म्हारी ओळख सवाई हुई। म्हैं बी.ए. फाइनल स्टूडेंट री हैसियत राखतौ तद बुडानियाजी म्हारै गांव में जळसै भेळा हुया, फगत म्हारै नूंतै सूं। वठै वांरी करीजेड़ी खुल्ली बडम आज ई चेतै है।

प्रयास संस्थान, चूरू सारू जमीन रै जोग पेटै साहित्यिकार श्री बैजनाथ पंवार अर साहित्यकार-उद्योगपति श्री श्याम गोइन्का अर केई बीजा रौ ई नांव हरमेस चेतै रैयसी। प्रयास संस्थान रै ओळाव समाजसेवी डाॅ. घासीराम वर्मा तौ भूलाइज ई नीं सकै। प्रयास भवन री थरपण मौकै भाई उम्मेद गोठवाल जे साथै नीं हुवतौ तौ मानीज ई नीं सकै कै कांम बणतौ। साहित्यकार दुर्गेश री ओळूं ई आवती रैसी। प्रयास संस्थान री ‘अनुसिरजण’, ‘अनुक्षण’, ‘लीलटांस’, ‘ओलोचना शोध पत्रिका’ रै प्रयासां सैंजोड़ै उम्मेद गोठवाल, कमल शर्मा, कुमार अजय, गीता सामौर आद ई उल्लेख में आवै।

नारी हकां नै लेयनै रात-दिन बात करणवाळी जोड़ायत डाॅ. कृष्णा जाखड़ नै ई अठै सिंवरू। साहित्यिक रुचि नै केवटणी अर हरेक पांवडै माथै साथ देवणै री हूंस म्हारी सगती है। लाडेस बेटी कृतिका पेटै तौ कैवणै रौ हाल बगत ई नीं आयौ। पण आं सूं अळगी ई केई बातां है जकी कथीज सकै। जिंयां कै वीं बेली री बात, जकौ छात्रसंघ अध्यक्ष चुनाव में दो जीपां रौ भाड़ौ बोलबालौ ई देग्यौ अर आज तांणी म्हनै ठाह ई नीं पड़्यौ कै वौ कुण हौ। चेतै आवै वौ बेली जकौ आपरी भैण नै म्हारै चुनावां में इयंा लगाय दीन्ही कै छोरियां रा वोट अेकठ हुवता जाबक ई बगत नंी लाग्यौ। वै गुरुजी जका आपरै चेलका नै चुनावी आंगळी सीध करी। हरिसिंह, सोमवीर, दयापाल, चेतराम, नरेन्द्र सैनी, रामगोपाल, लच्छीराम जैड़ा वै भायला जका रात-दिन उपाळा खप्या, आज ई खप्पै। कंवळी आंगळ्यां बिचाळै कलम दाबनै लिखीजेडौ बधाई रौ वौ बेनामी कागद ई चेतै आवै, जकौ डाक सूं पूगनै केई दिनां तांणी ऊध मचायां राखी अर छेकड़ पिछांण में आयौ। अठै वै ई छिण जीवता हुवै जका हेत रै ओळवै जीइजा अर जकां नै प्रेम री संज्ञा देवां तौ कीं गळत नीं। अठै वै ई बडेरा चेतै आवै जका हरमेस योजनावां रौ खुद लाभ उठायौ अर म्हनै अणजांण राखणै री आफळ में रात-दिन लाग्या रैया। इंयां कैवूं कै आज ई लाग्या रैवै। इणी गत और ई घणी बातां है जकी चेतै आवै, आवती रैसी।

पण खास बात आ है कै सगळी छोटी-छोटी बातां रळनै अेक इतिहास बणै। वौ इतिहास लिखीजतौ रैयौ है अर लिखीजतौ रैसी। पण समूचै लिखणै सारू आ ओपती ठौड़ कोनीं। क्यूंकै इतिहास में काळा पानां ई हुया करै अर काळा पानां भेळा केई नांव अठै बीजी भांत सूं भेळा करीजा है, इणी कारणै बात नै रोकौ देवूं। भळै कदैई....।

(साभार : 'केती लहरि समद की')
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कहाणी-

किस्तूरी कुंडळ बसै.....

रुग्घै डीगा-डीगा पांवडा धरणा सरू कर दीन्हा। सूरज आथमै ई हौ। बिंयां तौ सूरज रोजीनै आथमै। आथमै जकौ ई उगै। भलभांत कैइजै तौ उगै जकौ आथमै ई अर आथमै जकौ उगै ई। आ जुगू रीत है। पण आज रौ सूरज रुग्घै सारू हरमेसू गत वाळौ नीं हौ। वींनै लागै हौ कै सूरज आज बेसी अटावरौ चालै है। रुग्घै री मारग नापती रफ्तार सूं ई बेसी अटावरौ। 
तीन कोस रौ पैंडौ वीं सरू करîौ तद तौ सूरज साव चिलकै हौ। रातै गोळै बरणौ। वीं चालणै रौ मत्तौ सूरज नै देखनै ई करîौ हौ। चालती बगत वींरै चेतै आई ही दादै परसै री भोळावण- चांद कुंडाळौ-सूरज रातौ, घरबासौ-सगळां सूं नातौ। वौ जांणै हौ कै आ कोई कैबत कोनीं। दादै परसै री गोडां घड़îोड़ौ कौथ है। दादौ चायै खेत में रीगदीजतौ हुवतौ कै घर में चींथीजतौ, हरेक बगत मुळक बपरायां राखतौ। अठीनै री ईंट अर वठीनै री माटी रौ मेळ करनै तुका-बेतुका कौथ जोड़तौ रैवतौ। पण परसौ दादौ साव मानतौ कै कौथ रौ कथणौ अर दही रौ मथणौ ई कोई कळा है?
परसै दादै मुजब कळा तौ जीवण जीवणौ है। वींनै लगौलग चलावणौ है- भलै बगत में ई अर माड़ै बगत में। रुग्धै रै चेतै आयौ कै दादै वींनै अेक नीं बीसूं दफा सूरज दीखायनै कैयौ हौ, ‘लाडधर देख- औ सूरज जबरौ पळपळाट करै, पण अेक मौकै औ ई अंधियारै में गम जावै। पण कांईं औ हार मांन लेवै? औ रातौ भाठौ ई हार नीं मांनै तौ आपां लोही-मांस-हाड रा तिमेळा जीव हां, आपां किंयां हार मान सकां। थूं तौ कदैई नीं, क्यूंकै थूं म्हारौ लाडधर है। थूं तौ आथमतै सूरज रै रातै गोळै नै देखनै मारग नापण री हूंस पाळणवाळौ है।’
परसै दादै री वा भोळावण आज किंयां भूल सकै हौ रुग्घौ? परसै रौ लाडधर। लाडधर- दादै रौ गोडै घड़îोड़ौ नवौ सबद। लाडेसर रौ मौल कूंततौ। लाड सूं धरीजेड़ौ नांव। इणी कारणै आज जद जिंदगांणी रै नवौ मारग इण लाडधर नै नापणौ हौ तौ आथमीजतै रातै सूरज रै गोळै नै ई गवाह माननै वीं पैंडौ सरू करîौ हौ। लाडधर रुग्घै इण मौकै दादै परसै नै ई सै सूं बेसी सिंवरîौ। दादौ तौ वींरै रुं-रुं बसै। दादौ नीं हुवतौ तौ वौ कठै? रुग्घै ओळूं रै आसरै जायनै धड़धड़ी खाई। वीं धड़धड़ी सूं जांणै आथमतौ सूरज ई कीं हाल्यौ हुवै। आखी भौम ई पसवाड़ौ फोरîौ हुवै। औ कांईं- अै तौ भूकंप रा अैनांण है। हे लाडधर रा लाडीला परसुराम! कांईं करौ इंयां? कांईं धरती धूजायनै मारसौ। 
रुग्घै री ओळूं ई धूजी। भूकंप इण खोटै बगत में ई आवणा सरू हुया है। परसै दादै आपरै खोळियै नै कदैई भूकंप नीं दीखायौ। भूकंप वांरै बगत आवतौ तद दीखावतौ नीं? दादै रै खोळियै तौ फगत देख्यौ अेक राधू अर दूजौ लाडधर। राधू नै जलम देवतां ई खोह में खोयगी ही परसै दादै री पारसमणि। लारै बच्या दो जीव। जकां में अेक नै तौ जीव ई नीं कैइजै, मांस री लोथ। वीं लोथ नै परसै भेड रौ दूध प्याय-प्यायनै ऊरणियै ज्यूं पाळîौ। वा लोथ कंवळी इत्ती कै नैनौ-मोटौ घाव हुवता ई राध चसका मारणै लागती। पछै अैड़ै राधीलै नै कौथगारौ परसौ के कैवै- ‘राधू’ ई तौ। 
राधू कद राधेश्याम बण्यौ अर कद टाबरां रळîौ, जीयाजूंण रै धक्कां में परसै नै जांणै ठाह ई नीं लाग्यौ। परसै नै तौ ठाह तद पड़îौ जद लाडधर वींरौ काळजौ काढनै आपरै कब्जै में कर लीन्हौ। राधू रौ जायौ रुग्घौ। 
रुग्घै रै बाप राधू आपरी साख आखै इलाकै में कुभांती थरपी। कोई अैड़ौ अैब नीं हौ, जकै नै राधू नीं अंगेज्यौ हुवै। वींरां अंग तौ जांणै अैब अंगेजणै सारू ई बण्या हा। टाबरपणै सूं ई वौ घाट नीं हौ। जवानी आवता-आवता तौ मां बायरौ राधू खासा कबाड़ा कर न्हाख्या। जकी जवानी राधू रै बाप परसै झूर-झूरनै काटी, वीं ई आंगणै राधू जवानी रा राग रमै। कदैई कठैई कूटीजै तौ कदै कठैई। चांम रौ चस्कौ इस्यौ लाग्यौ कै जीयाजूंण री गत ई बदळगी। गांव तौ के, आसैपासै रै गांव वाळा ई राधू नै देखनै आपरै घरै आगळ लगा लेवै। फीटै अर हिड़कायेड़ै रौ के भरोसौ। वींरै रिस्ता अर नाता के लागै। बस्स... अठै सूं ई परसौ झूरणौ सरू हुग्यौ। आपरै जायै नै कैवै तौ के कैवै? साम्हणौ करै तौ कित्तोक करै? और तौ और, रोवै तौ ई कित्तौक रोवै?
टाबरपणै री कुबाणां तौ बगत बायरै साथै हवा हुज्या पण जवानी रै चसकारां रा अैनांण मिटता-सा मिटै। परसै घणी दोरपाई सूं जोड़तोड़ बिठायनै राधू रा फेरा तौ लगवाय दीन्हा पण खोइजेड़ै घर में अेकल सुख-स्यांती वौ किंयां थरप सकै हौ। निसरेड़ा पग फेरां साथै ई डट सकै हा पण हुवणी अर करणी दोनूं न्यारी-न्यारी हुया करै। करणी ई ऊंधा मारग चालणी चावै तद हुवणी के करै बापड़ी? इणी बिचाळै रुग्घै रा पगलिया ई आंगणै मंडग्या। पण पछैई घरै नवा बिस्तर रोजीनै सजता। भांत-भंतीली रै ओळाव घर रौ सगळौ सुख गमतौ रैयौ। परसौ कूकतौ रैयौ अर राधू मलंगा मारतौ रैयौ। दोनुवां रै बिचाळै पजती रैयी नानडि़यै रुग्घै री मां। 
दुखां रौ भारौ, पून रौ फटकारौ। कौथां रौ झोळा, हेत रौ हिंवाळौ। वींरी वौ जांणै, आपणी जूंण आपणी, वींरी जूंण वींरी। जकौ करसी वौ भुगतसी। मरणदîौ साळै नै। गंडक आगै हाडां रौ कुड लगाव देवै तौ ई वींरौ जी नीं भरै। हिड़कायेड़ै रौ अंत के हुवै। वौ ई इणरौ हुसी। आ सोचनै सुसरै-बहू तेवड़ लीन्ही कै देवौ राधू सूं आंतरौ। सुसरौ-बहू दोनूं खेत रीजै अर पसीनौ बीजै। बहू केसर रै रुग्घै री आस अर सुसरै परसै रौ विस्वास। बगत कटतौ कटै।
बगत कटै तद घणौ ई बेगी कटै अर नीं कटै तौ छिण ई मण हुज्या। राधू नै गई दीन्हा पछै जांणै बगत भाज्यौ बगै। इणरौ पड़तख सबूत औ कै रुग्घौ लरड़-लरड़ बधै। गुडाळियां सूं पगां चालणौ जांणै छिणेक में हुग्यौ। पगां चालणै सूं होठां भूरी रुवांळी आवणै में तौ जेज ई नीं लागी। पछै भूरी रुंवाळी नै काळी हुवतां तौ कदैई बेसी बगत लागै ई नीं। इण बदळाव रै चांनणै परसौ अर केसर हरखै। बाप-बेटी सूं बेसी हेत प्रगटीजै सुसरै-बहू दोनुवां में। वीं हेत रै पेटै ई रुग्घौ दादै अर मां री पीड़ नै पळूसणै रौ बख समझणै लाग्यौ।
परसै-राधू-रुग्घै री लाम्बी अेल, बधती जावै जांणै मतीरै री बेल- परसै दादै रा कौथ सरू हुग्या। रुग्घौ जोध-जवांन। पण बाप खोड़ीलौ। दादौ हालती नाड़ रौ बडेरौ मांणस, किणनै बगत कै वै रुग्घै बरणै जोध-जवांन कांनी निजर पसारै। बेटी देवणनै तौ जिग्यां और घणी ई हुवै। किणनै कोड आवै परसै री बेल बधावणै रौ। 
पण हुवणी हुवै जकी हुवै। बसतौ घर रुळज्या अर रुळतौ घर बसज्या। परसै री भलमाणसाई नै ओळखनै अेक बाप पावसौ। रंग चढ्या। बगत बदळîौ। छुरंगै वाळौ केसरियौ साफौ बरसां पछै सज्यौ। घोड़ी नाची। जनेत जची। कोड-मोद सगळा करीज्या। परसै नै तौ जांणै जीवण रौ जस मिलग्यौ हुवै। केसर ई क्यारîां में फळापणै लागी। छम-छम करता पाजेब रा घुघरियां बाजणै लाग्या। रोंवतै चूल्है, हरख जाम्यौ। रुग्घै रै तौ जांणै पांख आग्यी। इंयां कै जीवण रौ असली मतलब समझ में आग्यौ। किस्तूरी तौ रुग्घै रै कुंडळ बासौ लेय लीन्हौ। 
किस्तूरी री रुणक अर केसर रौ जी सौरौ- राधू खातर ई कीं चोखौ रैयौ। निसरता पग रोपीजग्या। अैब री अबखाई मिटती-सी लागी। पचासी पार पछै बिंयां ई हूंस कीं कमती हुज्या। पण घरां कब्जौ किणी बीजै रौ हुज्या तौ हूंस कीं मत्तैई मरज्या। बगत बायरै नै समझनै राधू खेत रौ मारग नापणै लाग्यौ। केसर भातौ पूगावै। परसौ पळसौ रुखाळै। चैधर करै। रुग्घौ... रुग्घौ तौ जांणै अेक जुग सिरजै।
पसीनै री पा जबरी लागै खेती रै। दाणां ई जमनै हुवै। बखारी पोळांपोळ भरीजै। रुळती गुवाड़ी पळती लागै। गांव इचरज करै। बास थूथकारा न्हाखै। अड़ोसी-पड़ोसी आगळ खुली छोडै। हेत रचै।
पण कित्ताक दिन....? खोड़लौ कदैई नीं सुधरîा करै। पचासी लांघतौ राधू अबकै राध में अैड़ी छुरी मारी कै राम ई माफ नीं कर सकै। खेत में राधू री पांथ भेळी लावणी लणती किस्तूरी सपनै में ई नीं सोची ही कै इंयां ई हुय सकै। राधू री गिंधली निजरां वीं माथै नीं जांणै कित्ता दिनां सूं ही। आज रै अेकलपै छिणेक में वींरौ सो-कीं खोस लीन्हौ। राधू री करणी, काळजै उतरणी। मद छकतौ राधू, सुसरै सूं भरतार हुग्यौ.....। 
किस्तूरी हांफरड़ै भरती रैयगी। वींरौ हाकौ कित्तीक दूर तांणी सुणीजै हौ। बेसी सूं बेसी सींवां रै ईरणां तांणी। वींरौ पौ-पाट ईरणां लांघनै खेत-पड़ोसी री ढाणी तांणी तौ नीं पूग सकै हौ। 
इणी बिचाळै राधू तैतीसा देयग्यौ गांव कांनी....। 
खेत पड़ोसी रै अठै सूं चाय बणावणै सारू दूध रौ गिलासियौ लेयनै केसर बावड़ी तद तांणी तौ घणौ-कीं रुळग्यौ हौ। किस्तूरी रा डूसका समझतां केसर नै के बगत लागै हौ। वा काळी बणगी। पगां हेटै गांव रौ गेलौ अर हाथां में कुहाड़ी। 
आ देखनै किस्तूरी ई लारै भाजी। मांयली पीड़ हूणी नै देखनै दबगी। के-करौ, के-करौ रौ रोळौ पीठ पाछै पण केसर किसी घाट घालै। उडी बगै गांव कांनी। लारै किस्तूरी.....।
रुग्घौ आज दादै री सेवा-चाकरी मांय घरां। बडेरौ हांण अर ऊपर सूं बीमारी। इण गत में कुण सेवा नीं करै मायतां री।
काळी बणी केसर मदीजेड़ै राधू रा खोज बूरती लारै री लारै घरां पूगी। अेक झटकै में सगळा समझग्या। केसर-राधू री कुस्ती बिचाळै परसौ आ पज्यौ। राधू रौ डांव पड़ग्यौ अर कुहाड़ी हत्थै चढगी। भाग माड़ा परसै रा। अेक में ई घूता खाग्यौ। आ देखनै रुग्घै रै सिर ई भैंरूं चढग्यौ। राधू माथै सिंघ री ज्यूं झपट्यौ। अेक कुहाड़ी बाफर रैयी। 
केसर बावळी हुग्यी। औ के? के रौ के हुग्यौ। नसौ उतरग्यौ। रुग्घौ ई डरूंफरूं हुग्यौ। 
पण हुवणी जकी तौ हुग्यी। छिणेक में घणौ कीं रुळग्यौ। 


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आज सूं दसेक दिन पैलां काळ-कोठरी सूं छूटनै रुग्घौ घरां बावड़îौ हौ। गांव बड़îां पछै सै सूं पैलां वीं उण ई कुंवै धोक लगाई ही, जकै में लारै सूं मां केसर अण-आसरै हुयनै सरणौ लेय लीन्हौ हौ। पछै उणी आंगणै माथौ निवायौ हौ जठै दादौ परसौ अर बाप राधू रगत रै नाळै रम्यां। अर पांच-सात दिनां रै सोग पछै रुग्घै गांव रै गोरवैं नवी झूंपड़ी थरप लीन्ही ही। गांव ई गांव बरणौ हौ। कठैई हेत रा छांटां तौ कठैई तिजाब रा चड़ीड़। पण रुग्घै री मनगत परसौ रमै। गम्योड़ौ लाडधर बारै निसरै। वींनै सुणीजै, घरबासौ-सगळां सूं नातौ। 
बस्स..... औ ईज कारण हौ कै वींरै चेतै ही किस्तूरी री उडीक। अर कुंडळ बसती उणनै वौ बिसराय नीं सक्यौ। मां-बाप रै सरणै बीखै रा दिन काटती किस्तूरी रौ इण विगत में के कसूर....? तदई तौ रातै सूरज रौ गोळौ रुग्घै कन्नै सूं डीगा-डीगा पांवडा धरवावै हौ। किस्तूरी कांनलौ तीन कोस रौ पैंडौ लांघ्या ई तौ सूरज उगसी....। रुग्घौ जांणै हौ कै सूरज रातौ भाठौ हुवता थकां ई हार नीं मानै पछै वौ तौ.....। आथमै जकौ उगै ई। 
रुग्घै री चाल कीं और अटावरी हुग्यी ही।   
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