साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली वर्ष 2011 से 24 भारतीय भाषाओं में सालाना युवा पुरस्कार प्रदान कर रही है। इस में 35 वर्ष से कम के रचनाकार की किसी एक कृति को चुना जाता है। प्रत्येक भाषा से एक—एक प्रतिनिधि को यह युवा पुरस्कार मिलता है। इस ढंग से हरेक वर्ष साहित्य अकादेमी से मान्यता प्राप्त 24 भाषाओं से 24 युवा राष्ट्रीय फलक पर सामने आते हैं।

यहां साहित्य अकादेमी से समादृत युवा साहित्यकारों की रचनाओं का राजस्थानी भाषा में अनुवाद सं​कलित है। अनुवाद माध्यम भाषा हिन्दी तथा अंग्रेजी से किया गया है


ध्यातव्य : फिलहाल इस ब्लाग पर संपूर्ण अनुवाद इसलिए उपपलब्ध नहीं है कि पहले इसको पुस्तकाकार में आना है। पुस्तक छपने के बाद यहां सारा अनुवाद चस्पा कर दिया जाएगा।

राजस्थानी : कुमार अजय






साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली कांनी सूं सगळी 24 भासावां रै युवा लिखारां नै प्रोत्साहन सारू सरू करीजौ ‘युवा पुरस्कार’ इण वळा राजस्थानी भासा सारू चूरू रै युवा कवि कुमार अजय नै दिरीजणै री घोसणा हुयी है। इण मौकै कुमार अजय संू  करीजी खास बंतळ
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जिंदगांणी रौ कोई एक  रंग नीं!

साहित्य अकादेमी सूं युवा पुरस्कार री घोसणा माथै कांई मैसूस करौ?
युवा पुरस्कार अकादेमी री सरावणजोग सरुवात है। नवै लिखारां नै मिलणै वाळौ औ पुरस्कार भासावां रै भविख री नींव थरपै। वांरी हूंस बधै अर वै भासा अर साहित्य सारू दूणी ऊरजा अर ऊरमा साथै कांम करणै ढूकै। जकी भासा में रचाव सारू विजयदांन देथा रौ नामांकन नोबल पुरस्कार सारू हुवै, अैड़ी सिमरध सिरजण परंपरा वाळी भासा सारू युवा पुरस्कार म्हनै देवणै री घोसणा हुयी, आ सोचनै म्हारी छाती चवड़ी हुवै। कोई रचना पुरस्कार सारू नीं रचीजै, पण पछै ई किणी रचना नै जद सरावणा मिलै तौ लिखारै री हूंस तौ बधै ई।







आपरी कविता में एक पासै प्रीत रा कंवळा भाव है तौ दूजै पासै एक झाळ ई दिखै। इण विरोधाभास रौ कारण?
 कवि आखै मानखै री पीड़ अर वींरौ हरख खुद रै कंवळै हीयै मांय भोगै अर जीवै। जिंदगांणी रौ कोई एक रंग नीं! अेक छिण सुख री बिरखा है तौ दूजै ई छिण दुखां रा बादळ! अैड़ै में आपां कीकर कवि नै एक खूंटै बांध सकां।! टाबरपणै सूं जकी अरथावू अर समाजू अबखायां बिचाळै म्हैं रैयौ हूं, वठै रचनावां में दरोळ अर झाळ तौ सुभावू है। रैयी बात प्रीत रै भावां री तौ कैवणौ चावूं कै प्रीत मिनख री जिंदगांणी रौ सैसूं महताऊ अर जरूरी तत्त्व है। प्रीत बिनां तौ जिंदगांणी अर जगती री चितार ई नीं करीजै।

साहित्य सूं जुड़ाव कीकर हुयौ?
टाबरपणै में कहाणी-कविता बांचणै रौ कोड हौ। अखबार रै दीतवार अर बुधवार रै रंगीन पांनै री घणी उडीक रैवती तौ गांव में चालतै प्रौढ़ सिक्सा केंद्र री ई घणी पोथ्यां बांची। बांचतां-बांचता ई नीं ठाह कद रचाव री जातरा सरू हुयगी। लिखेड़ी रचना छपी अर लोगां री टीप मिली तौ हूंस बधी। पण टाबरपणै मांय जद लिखतौ तौ रचाव री भासा हिंदी ही। पछै आदरजोग विजयदांन देथा, चंद्रप्रकाश देवल, सत्यप्रकाश जोशी, मालचंद तिवाड़ी अर अर्जुनदेव चारण जैड़ै मानींजता लिखारां री पोथ्यां बांची तौ मायड़ भासा री मठोठ ई ठाह लागी। दुर्गेश जी अर दुलाराम जी सहारण राजस्थानी में लिखणै री प्रेरणा दीन्ही। ‘संजीवणी’ सारू धानुका सेवा ट्रस्ट, फतेहपुर रौ श्रीमती बसंती देवी धानुका युवा पुरस्कार ई मिल्यौ। इणी बिचाळै महाराजा गंगासिंह विश्वविद्यालय, बीकानेर सूं राजस्थानी एम. ए. में गोल्ड मेडलिस्ट ई रैयौ। आ सगळी बातां सूं बधी मायड़ भासा में रचाव री हूंस कारणै सिरजण-जातरा चालै।




साहित्य अकादेमी सूं छपी ‘संजीवणी’ माथै अकादेमी रै ई युवा पुरस्कार री आस ही?

म्हैं पैलां ई कैयौ कै कोई ई रचना पुरस्कार सारू नीं रचीजै। ‘संजीवणी’ रै रचाव लारै ई अैड़ौ कीं सोच नीं हौ। म्हैं तौ आ ई नीं सोची ही कै संजीवणी साहित्य अकादेमी सूं ई छप सकै। इण बाबत उल्लेख करणौ चावूं आदरजोग स्री भरत ओळा अर दुलाराम सहारण रौ जका अकादेमी रै परामर्श मंडल में नवोदय योजना में ‘ंसजीवणी’ छापणै रौ प्रस्ताव राख्यौ। परामर्श मंडल रा सगळा सदस्य अर संयोजक स्री चंद्रप्रकाश देवल इण पेटै हामळ दीन्ही अर म्हारै सारू इण सूं बेसी हरख री बात और कांई हुय सकै कै साहित्य अकादेमी जैड़ै बैनर सूं म्हारी पैली पोथी छपै। रैयी बात युवा पुरस्कार री, तौ इण री आपरी अेक न्यारी प्रक्रिया है। अेक परामर्श मंडल म्हारी पोथी नै अकादेमी सूं छपणजोग मानीं अर दूजै परामर्श मंडल रै बगत तय करीजा निर्णायकां युवा पुरस्कार सारू इण पोथी नै अंगेजी, एक  रचनाकार रै नातै सोचनै घणौ गीरबौ हुवै।


लिखारै री समाजू, अरथावू थितियां सूं वींरी रचना जामै। आपरै लेखन में आ बात कठै तांणी लागू हुवै? 

लिखारै री समाजू अर अरथावू थितियां रौ असर रौ वींरै रचाव मांय आवणौ अेक सुभावू प्रक्रिया है। लिखारौ खुद री रचना में समाज री पीड़ अर हरख नै जबांन देवै। पण आ ई कैवणौ चावूं कै मिनख रै हीयै जकी पीड़ अर हरख खुद री जिंदगांणी में मैसूस करै, बडै सूं बडै लिखारै सारू ई वीं पीड़ रौ चितराम उकेरणौ अेक जबरी चुनौती है। जकौ म्हैं भोग्यौ हूं, वींरौ अेक नैनौ-सौ अंस ई नीं मांडीजै म्हारै सूं पण म्हारी रचनावां मांय ई म्हारौ भोग्योड़ौ जथारथ है। हुय सकै कै कोई बात म्हारी निजू हुवै अर कोई बात आसै-पासै रै किणी दूजै मिनख री, पण म्हारै कंवळै हीयै म्हैं वींनै भोगी अवस हूं।


आप लिखणैै री सरुवात हिंदी सूं कीन्ही, पण हिंदी में कोई पोथी नीं हाल तांणी?

अैड़ी बात नीं है कै हिंदी छूटगी हुवै। राजस्थानी अर हिंदी दोनुवां में अबार ई कलम चालै। हिंदी में अेक कविता संग्रै ‘कहना ही है तो कहो’ छपण री उडीक मांय है। हिंदी गजल अर लघुकथा ई खासा लिखीजी है पण हाल पोथी छपावणै रौ कोई विचार नीं। भविख मांय ई हिंदी अर राजस्थानी दोनुवां में ई लिखतौ रैवूं, अैड़ी मनसा है।


जनसंपर्क सेवा सूं पैला आप अध्यापक रैया, वीं सूं पैला पत्रकार अर रंगकर्मी ई। कैरियर पेटै आपरै संघरस नै ई कांईं पाठकां साम्हीं चवड़ै करणौ चावौ?
टाबरपणौ अभावां सूं बांथेड़ां करता निसर्यौ। बापू गांव में चाय री दुकांन करता अर साथै ई खेती-बाड़ी। बारानी खेती में कीं आंणी-जांणी नीं अर गांव में दुकांन ई कीं खास नीं चालती। अेक छोटौ अधपकौ-सौ मकांन अर दो-अेक छांन-झूंपड़ा हा। ओळूं रै आंगणै वै चितरांम ई रमै, जकै मांय म्हां टाबरां सारू कीं ठीक करणै री आफळ में मां अर बापू बाजरै री रोटी अर सूखी मीरच रा फोलरा पांणी में चूरनै खावै, जकै मांय च्यार मखाणां री पांती सारू म्हां भांण-भायां में झौड़ हुवै। पण सगळी अबखायां पछैई वै म्हानै स्कूल सूं जोड़नै राख्या। साथ ई बगत मिलतौ तद चाय री दुकांन में बापू रौ सैयोग करता। दसवीं जद फस्र्ट डिवीजन सूं पास कीन्ही तद स्कूल टाॅपर हुवणै रौ घणौ मोद हौ तौ ई क्लास मांय केई वळा ‘तीन च्यार में चाय’ अर ‘दो तीन में चाय’ लावणै री कैयनै टाबर चिगावता, ग्यारहवीं पछै रेगुलर पढाई छूटगी अर म्हनै जयपुर जांण्यौ पड़îौ कांम-धंधै री हेर मांय।

 अै कद री बातां है?
अै सन 1998 री बातां है। म्हैं जयपुर गयौ, अेक मेडिकल स्टोर में नौकरी कीन्ही अर बारहवीं रौ प्राइवेट फाॅर्म भर्यौ। नौकरी घणी दौरी ही, दिनुगै सात बजै सूं रात रा दस बजै तांणी चकरी रैवतौ अर सगळौ दिन रळायनै 25-30 किमी साईकिल चलावणी ई हुवती। सात सौ रिपिया म्हीनै में दो म्हीना ई वा नौकरी करीजी। पछै अेक बंद फैक्टरी में आॅफिस ब्वाॅय री नौकरी कीन्ही। तिणखा ही तेरह सौ रिपिया म्हीना। पण प्राईवेट पढाई चालती रैयी। छेवट वा ई नौकरी छूटगी। वां ई दिनां रवींद्र मंच अर जवाहर कला केंद्र माथै कीं नाटकां में अभिनय कीन्हौ अर गीत ई लिख्या पण वठै अरथावू दीठ सूं कीं आस नीं ही। अेक टीवी धारावाहिक मांय दो ई दिन कांम कीन्हौ हौ कै बीमारी लारै हुयगी। डाॅक्टर टी.बी. घोसित कर दीन्ही। अब बिनां कांम-धंधै जयपुर में रैवणौ अबखौ ई हौ।

 पछै?
पछै कांई हुवै हौ? टूक-टूक हुया सपना अर दवाइयां रौ झोळौ भरनै पाछौ गांव आयग्यौ। वां दिनां म्हारी थिति देखनै खुद म्हनै ई दया आवती। अठै रौ इलाज सरू कीन्हौ तौ डाॅक्टर टी.बी. नै टायफायड में बदळ दीन्ही। चूरू रै डाॅ. रवि अग्रवाल रौ अैसान मांनू कै वै जीवाय दीन्हौ। पण बाकी संघरस वठै रा वठै हा। नवी सरुवात कीन्ही। अेक स्कूल में मास्टरी सरू कीन्ही। पछै खबरनवीसी पकड़ी। खूब सरावणा मिली अर राज्य स्तरीय ‘ग्राम गदर’ पुरस्कार अर ‘कुलिश स्मृति: कलम से स्वराज’ पुरस्कार ई मिल्या, पण अरथावू संघरस हाल ई लारौ नीं छोडै हौ। बिचाळै ई बी.एड. कर लीन्ही ही। मास्टर री भर्ती रौ फाॅर्म भर दीन्हौ, पास ई हुयग्यौ। कोटा जिलै रै रायखेड़ा गावं में 16 म्हीना स्कूल मास्टरी कीन्ही। पछै सहायक जनसंपर्क अधिकारी रै पद माथै चयन हुयौ। घणी मोटी नौकरी नीं है पण लारलै संघरस नै देखूं तद घणौ संतोख मैसूस करूं। इण संघरस-जातरा मांय घणा ई अैड़ा नांव है जका बगत-बगत माथै हूंस बधायी, तौ भिजोग न्हाखणियां अर हूंस तोड़णियै मिनखां री ई लांबी पंगत है।


युवा लिखारां रै मिस राजस्थानी रौ कांई भविख दिखै?
राजस्थानी में युवा लेखन री थिति आच्छी अर संतोखजोग है। केई नवा लिखारां आपरी कूबत साथै मायड़ भासा री खेचळ सारू साम्हीं आय रैया है। अेकलै चूरू अंचल में ई स्री दुलाराम सहारण री अगुवाई में पंद्रह-बीस लिखारां री अेक टीम लगौलग कांम करै। ओम नागर, राजूराम बिजारणियां, सतीश छींपा, मदन गोपाल लढा, रीना मेनारिया, उम्मेद धानियां, मोहन सोनी, गौरीशंकर निमिवाल, देवकरण जोशी, जितेन्द्र सोनी साथै घणा ई नांवां रौ उल्लेख करीज सकै। पण मायड़ भासा विरोधियां नै पड़ूत्तर देवणै घणै जबरै कांम री दरकार ई है। भासा रौ भविख अब युवा लिखारां रै हाथ मांय है। म्हैं पैलां ई कैयौ कै पुरस्कार किणी लेखन री डूंगाई नापणै रौ अेकल पैमानौ नीं हुवै। लिखारां नै आपरी हूंस बणायी राखनै मायड़ भासा रै साहित्य रै सिमरध करणै रौ कारज करतौ रैवणौ हुयसी अर सिरजण नै गति देवणी हुयसी।


मौलिक सिरजण साथै उल्थै पेटै ई आपरौ खासा कांम है? उल्थाकार री निजर सूं मायड़ भासा री कांई ठौड़ दिखै?
साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली सारू सलाम बिन रजाक रै उर्दू कहाणी संग्रै ‘शिकस्ता बुतों के दरमियान’ रै राजस्थानी उल्थै ‘खांडी मूरतां बिचाळै’ पछै अबार साहित्य अकादेमी सारू ई कुवेम्पु रै कन्नड़ उपन्यास ‘कानूरु हेग्गडिति’ रौ राजस्थानी उल्थौ करूं। राजस्थानी में उल्थै री पैलै छापै अनुसिरजण मांय ई सह-संपादन रौ कीं फरज निभावणै री आफळ करूं। बीजी ई केई रचनावां रै उल्थै रौ माकौ मिल्यौ है। उल्थै री भासाई बिगसाव में महतावू ठौड़ है। उल्थै रै मारफत आपणी भासा रौ साहित्य आखी दुनिया रै साम्हीं जावै तौ बीजी भासावां री रचनावां आपणी भासा रै पाठक तांणी पूगै। आपसरी मांय भासावां अर साहित्य री सामरथ रौ ई ठाह लागै। उल्थै री इण प्रक्रिया मांय म्हैं मैसूस करूं कै देस री केई मान्यता वाळी भासावां राजस्थानी संू घणी पोची है। राजस्थानी रौ सबद भंडार अर सामरथ घणौ सिमरध है।

राजस्थानी भासा री पत्र-पत्रिकावां री थिति माथै कांई सोचै?
राजस्थानी मांय सरू सूं ई पत्रिकावां पेटै खासी आफळ हुवती आवै। पण अै आफळ निजू हुवणै रै कारण छापणियै री थिति मांय बदळाव साथै ई इतियास बणगी। पछै ई पत्रिकावां रौ जोगदांन कमती नीं आंकीज सकै। आं बरसां मांय केई पत्रिकावां री सरुवात हुयी है, राजस्थानी पेटै और सांतरौ कांम आं रै मारफत हुयसी, आस करीज सकै।
 किणी भासा रै विगसाव सारू पत्र-पत्रिकावां रौ हुवणौ घणौ जरूरी है। राजस्थान रै सामरथवांन उद्योगपतियां नै आं पत्रिकावां नै सैयोग देवणौ चाइजै। सरकार ई इण बाबत कोई खास बजट देवै तौ रोळी रै टीकै माथै ऊजळ चावळ। पाठकां नै ई पत्रिकावां खरीदनै बांचणी चाइजै जकै संू पत्रिकावां रौ बिगसाव हुवै। लारलै बरसां में केई पत्रिकावां री सरुवात हुयी है। प्रयास संस्थान चूरू कांनी सूं म्हारै संपादन में तिमाही राजस्थानी पत्रिका ‘लीलटांस’ सरू करणै री तेवड़ी है। आस करां नै पत्रिकावां सूं राजस्थानी नै नवौ बळ मिलसी अर भासाई अेकरूपता पेटै ई कांम हुयसी।



राजस्थानी रै मानता आंदोलन मांय कांई कमी निगै आवै?
राजस्थान रै रैवासियां रौ लोकतांत्रिक हक है भासा री मानता। करोड़ां मिनखां री जबांन कद तांणी बंद राखीजसी? इण सारू कैय सकां कै मानता तौ मिलसी ई। हरख अर संतोख री बात है कै संवैधानिक मानता नीं हुवणै पछैई राजस्थानी अेक अैड़ी भासा है, जिण मांय जबरौ कांम हुय रैयौ है। नित नवा लिखारां अर पोथ्यां साम्हीं आवै। मानता आंदोलन नै साहित्यकारां अर लिखारां रौ आंदोलन कैवणौ गळत है। मानता सूं असल फायदौ तौ अठै रै जोध-जवांनां नै है। भासा नै संवैधानिक मानता हुवै तौ राजस्थान रै मोट्यारां नै रूजगार अर सरकारू नौकरîां पेटै घणौ नफौ हुवै। राज्य सरकार इण पेटै प्रस्ताव पास करनै केंद्र सरकार कन्नै भेज राख्यौ है, आस करां कै तावळी ई आपणी बात सुणीजसी अर मायड़ भासा री मानता रौ संकळप पूरौ हुयसी।

बाजारवाद रै बधापै बिच्चै राजस्थानी पोथ्यां आम पाठकां तांणी किंयां पूगै?
अजय: आ अबखाई फगत राजस्थानी ई नीं सगळी भासावां रै साहित्य सााथै है। समाज माथै बाजारवाद रौ असर खुद रा रंग दीखावै अर आज लोगां री प्राथमिकतावां भौतिक जीन्सां कांनी बेसी है पण पछैई इण बात पेटै संतोख करीज सकै कै पाठकां री गिणत लगौलग बधती जावै। इंटरनेट अर बीजा संचार साधनां संू ई साहित्य आम पाठकां तांणी आपरी पूग बणाई है। राजस्थानी मांय केई प्रकाशक अर संस्थावां आम पाठक तांणी पोथी पूगावणै सारू खेचळ करै। सरकारी प्रयासां संू इण बाबत और खेचळ हुवै तौ इण पेटै खासौ कांम हुय सकै। भासा रै अध्यापकां सूं इण बाबत घणै जतनां री दरकार है। वै चावै तौ आज रै टाबरां मांय साहित्य रौ कोड जगावणै रौ महताऊ कांम कर सकै। साहित्य सूं आंतरै हुवणै कारणै ई आज टाबरां रौ अभिव्यक्ति कौशल खत्म हुवतौ जावै। बी.ए. पढ्योड़ा घणा-सा टाबर ढंग सूं पांनड़ी नीं मांड सकै।




 छेवट...राजस्थानी रै युवा लिखारां खातर आपरौ कोई संदेस..?

अजय: म्हैं तौ हाल खुद ई संदेस उडीकूं! पण कैय सकूं कै युवा लिखारा आच्छौ कांम कर रैया है। पछैई नवा लिखारां नै जबरी मैनत करणी हुयसी। म्हैं ई इण पंगत मांय अपणै आपनै ऊभौ मांनंू। म्हारी सै संू अरज ई है कै आपां मोकळौ राजस्थानी साहित्य बांचां अर सिरजण करता रैवां। बगतसर कांम करणियै री ईमानदारी संू कंूत पक्कायत हुवै ई।

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- कुमार अजय, मुपो. घांघू, जिला-चूरू
         

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